काश की मैं लिख पाता , एक कविता तुम्हारे नाम।
मगर ......!
शब्द तो तुममे बसते है,
जो खुशनुमा से हैं, और
कुछ अपनेपन के भाव लिए
जैसे सावन में दिल को गुदगुदाती
रिमझिम बूंदों के मोती टपके,
और मन को यूँ लगे जैसे
सुखी टहनी में कोई फूल खिले,
हौले से नर्म हथेलियों की छुअन देकर
सहजते हो जिसे तुम माली की तरह
फिर खुद ही मुस्कुरा कर अपने प्यार पर
लुटाते हो प्यार, प्यार की तरह.............
काश की मैं लिख पाता, एक कविता तुम्हारे नाम........
कैसे दू मैं शब्दों को जीवन
वो तो बसते है तुम्हारे अन्दर
फिर भी इक कोशिश मैं रोज करता हूँ
कुछ लिखता हूँ, कुछ मिटाता हूँ,
यूँ कुछ शब्द फिर अपने से लगते हैं
ज़िन्दगी की धरातल पर सपने से लगते हैं
फिर धुप धवल आती हैं
ओस की बूंदों को उड़ा ले जाती हैं,
मैं चुनता रह जाता ओस की बुँदे
अंधियारी धुप के आगोश में,
फिर मेरे शब्द बिखर जाते
और छटपटाते मन के अन्दर जो
भरा होकर भी , खाली-पन रह जाता हैं....
काश की मैं लिख पाता, एक कविता तुम्हारे नाम ................
तुमने दिया जिन्हें अपने शब्दों से प्राण
वो फूल आज भी मुस्कुरा रहे हैं
तुमने लिखी जो पंक्तियाँ
वो नभ में उजियारा फैला रहे हैं,
हाँ तुम्हारे शब्दों में जीवन हैं
हर एक शब्द समेटे हैं अपने भीतर
नए मौषम को जीने की ख्वाहिश
जब-जब उतरता हूँ, इनमे समां जाता हूँ
अपने वज़ूद को तुम्हारे भीतर तलाशता हूँ,
मगर मैं हर बार रह जाता हूँ अधुरा
काश अपने कुछ शब्द तुम मुझे दे देती
मिलकर इक नयी दिशा गढ़ते
कभी तुम मुस्काती, कभी मैं मुस्काता
तुम्हारे दिल के दर्द को अपने भीतर पाता.....
काश की मैं लिख पाता, एक कविता तुम्हारे नाम............
______________________सिद्धू________________