Sunday, July 22, 2012




शब्दों से जीविका कमाने का धंधा बहुत ही विचित्र है।कवि और कलाकार  शब्दों को संजोते है, उन पर विचार करते है, उन्हें ऐसे दबाव के नीचे  रखते है  जो कि पृथ्वी हीरे के निर्माण करते समय डालती है। वे शब्दों को श्रधापुर्वक चुनते है, उन्हें तराशते है चमकाते है, तो हर शब्द को उसकी पंक्ति में रखते है। वे उसकी बनावट को जांचते परखते है उसे लय देते है, हर पंक्ति को उसके छंद में जमाते है और छंद को जमाते है सम्पूर्ण रचना में। और इस तमाम सावधानी और ज़मावट के बाद उनके गढ़े शब्द उड़ान भरते है।वो आपके मस्तिस्क पर छाप छोड़ते है, आप की खोपड़ी के भीतर विस्फोट करते है। अंतदृष्टी की चिंगारियां भरते है और फिर आप ज़रा भी सामान्य नहीं रह पाते।

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