Tuesday, July 3, 2012

       
                         *****ताज़*****
       

ताज़ मैं गूंजती हैं मुहब्बत की आवाज़.
सदियों पुराना हैं ये इश्क-ए-अफ़राज I ...( इश्क-ए-अफ़राज --प्यार की शोभा बढ़ाने वाला)

ताज़ मज़हरे उल्फत हैं तो क्या... (मज़हरे उल्फत--- प्रेम का प्रतीक )
उसके सीने में दर्द छुपा होगा I
 जो न किसी ने देखा कभी..
वो ग़म का तून्फा रुका होगा I
रूह उनकी रोती होगी, जिनकी सन्नाई ने इसे किया ईजाद I -  (सन्नाई -- शिल्पकारी- कलाकारी)
 ताज़ मैं गूंजती हैं मुहब्बत की आवाज़..........

ज़ज्बा-ए-इश्क में डूबे  शहंशाह ने जब..
कारीगरों के हाथ कटवायें होंगे I
मुमताज़ का वफाए दिल रोया होगा..
आँखों में अश्क़ आये होंगे I 
क्या दिल-ए-उल्फत में नहीं होते नाजुक ज़ज्बात....
 ताज़ मैं गूंजती हैं मुहब्बत की आवाज़ I

हैरत भरी निगाहों से देख ज़माने के..
लब खुलते हैं इसकी सताइश में..I - (सताइश - प्रसंशा)
किसके कानों आती होगी सदा..
जो आह निकलती हैं इसकी नुमाइश में..I
लोग जानकर भी अंजान हैं "सिद्धू" ये राज़......
ताज़ मैं गूंजती हैं मुहब्बत की आवाज़ I  
___________________सिद्धू _______

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