कितने अज़ीब से यहाँ हालात हो गए ।
जाने क्यू लोग अपनों से दूर हो गए ।।
चलते थे कभी जो बनकर हमसफ़र ।
चलते हुए राह में वो आज खो गए ।।
क्या है दास्ता,कुछ खबर नहीं ।
जाने कैसे-कैसे हादसे हो गए ।।
वक़्त नहीं किसी के पास यहाँ ।
सब अपनी-अपनी हसरतों में खो गए ।।
रिश्तो के दरमियाँ बढाकर फासले ।
दिलो में कितने कांटे चुभो गए ।।
हवाओं के रूख में भी अजीब सी घुटन है ।
सारे मंज़र दहशतों में खो गए ।।
कहते है रहनुमा जिन्हें लोग सभी "सिद्धू" ।
जाने कितने कत्ले-आम उनके इशारों में हो गए ।।
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