खो गए है तम्मनाओं के साये में वो ऐसे..
भूल गए सबको खुद की खबर ना हो जैसे..
इतना आसाँ नहीं चाँद-तारो को तोड़कर लाना..
समझो कि दहकते हुए अंगारों को पार कर जाना..
वापस ज़मीं पे लौट आओ फ़लक पे ना घर बसाना..
सोती आँखों के ख्वाब पुरे हो भी तो कैसे...
खो गए है तम्मनाओं के साये में वो ऐसे......
फ़ासले पड़ जायेंगे रिश्तो के दरमियाँ तुम्हारे..
क्या करोगे जो टूट जायेंगें आशियाँ तुम्हारे..
अपनों के बीच दिन गुजरेंगे परीशाँ तुम्हारे....
ऐसे हालत में ज़िंदगी गुजरोगे तो कैसे..
खो गए है तम्मनाओं के साये में वो ऐसे.. ..
बदल दो ज़ज्बात अपने वक़्त के साथ यहाँ..
वफ़ाए दिल लेकर कर लो खुद से मुलाक़ात यहाँ..
मंजिल मिल जाएगी जो चलोगे थाम के हाथ..
पाओगे तुम सौगात "सिद्धू" नयी सहर आई हो जैसे...
खो गए है तम्मनाओं के साये में वो ऐसे......
भूल गए सबको खुद की खबर ना हो जैसे......
_________________सिद्धू_________________
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