Wednesday, July 18, 2012

आज सुबह से ही  मन में एक टीस सी उठ रही हैं। यूँ महसूस हो रहा था जैसे की कुछ छूटा जा रहा है ज़िन्दगी में।  किसी से हुई गुप्त्गू बार-बार मन को गुदगुदाने लगती। उस पर यह ख़्याल की वो कोई अपना तो नहीं था मगर क्यूँ...! ज़हन से उसका ख़्याल नही जाता, क्यूँ उसकी बाते गुनगुनाती है कानो में..!और इक सुमधुर संगीत का एहसास जगाती है। मैंने कई बार अपने दिल से ज़हन से उस ख़्याल को झटकना चाहा मगर कमबख्त वो दर्द से भरा मीठा अहसास दर्द को और करीब खीचने की कोशिश करता। उफ़...! ये क्या है...? क्यूँ एक तड़प सी चाह सी मांग करने लगता है दिल...! खुद को बहलाते हुए,समझाते हुए मैं अपने आप को मशरूफ रखने के जतन में जुट तो जाता हु मगर फिर से वह ख़्याल रिमझिम फुहार सा दिल पर अपनी बूंदों से दस्तक देता और फिर मुझे बेचैन सा कर देता। इसी कशमकश में मैं अपने आप को समझाता की  जो है वह होकर भी मेरा  नहीं है, खासकर मेरे लिए,।बस उसे दिल के किसी कोने में रहने दे और एक सुनहरी याद  की बूंदों को छोड़ दे की जब-जब सावन आये मैं उस याद से महकने लगु, और ज़िन्दगी जो कि हर किसी को सभी कुछ नहीं देती की  तर्ज़ पर खुद को खुशनसीब समझू कि चलो और कुछ नहीं तो वो गुप्त्गू ही सही जो उसकी यादों के सहारे कुछ देर मुझे जीने तो देती हैं। वरना जहाँ बहुत कुछ छुट जाता है ज़िन्दगी में वो  वहां शख्स ही सही जिसे अनजाने में शिद्दत से चाहा था, उस शख्स से की गुप्त्गू कुछ पल में कई ज़िन्दगी जीने की ख्वाहिश जगा गई थी । आज वो मेरा कोई  नहीं मगर अपना सा तो लगा था कभी, फिर मैंने खुद को ही आवाज़ दी शायद वो भी सुन सके आवाज़  मेरी, मगर अफ़सोस मुझे खुद की ही आवाज़  सुनाई नहीं देती ,  बस उसे सुनना चाहता हूँ,  उसे पढना चाहता हूँ, गुनगुनाना चाहता हूँ, इक किताब की, इक खुशनुमा संगीत की तरह, जो दिल को दर्द से कुछ राहत दे मगर.....!!
एक टीस सी दबी रह गयी मन में।.....सिद्धू .....!!    

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