Sunday, July 29, 2012



मेरी ज़िन्दगी तुम बिन कितनी उदास है।
तू दूर है मगर, तेरी यादें मेरे पास हैं।

ऐ गुलबदन वो तेरा मुस्कुराना
हँसते-हँसते फिर रूठ जाना
सुनके मेरी सदा दौड़ के आना
मिलकर गीत वफ़ा के गाना....
हर-नफ़स शौक-ए-विसाल की आस हैं।
मेरी ज़िन्दगी तुम बिन कितनी उदास है.....

ये फुल, ये कलियाँ, ये चमन सब हैं बेकरार
ये घटा, ये फिज़ा, ये माहताब कोई नहीं हैं सरशार
सुना है आलम, उदासी का घिरा है गुबार
तुम्हारे आने का सबको है इंतज़ार
तू नहीं तो मेरे महबूब तेरी गली भी उदास हैं।
मेरी ज़िन्दगी तुम बिन कितनी उदास है..........

वो अपनी मुक्कमल मुलाकाते
पहरों बैठ किये जहाँ प्यार की बाते
रोज सताती है अब हिज़्र की राते
बस तेरी याद से ही जी बहलाते
हर वक़्त हर लम्हा "सिद्धू" दर्द का एहसास है।
मेरी ज़िन्दगी तुम बिन कितनी उदास है.....
तू दूर है मगर, तेरी यादें मेरे पास हैं.....
__________________________सिद्धू________

Friday, July 27, 2012




काश की मैं लिख पाता , एक कविता तुम्हारे नाम।

मगर ......!
शब्द तो तुममे बसते है,
जो खुशनुमा से हैं, और
कुछ अपनेपन के भाव लिए
जैसे सावन में दिल को गुदगुदाती
रिमझिम बूंदों के  मोती टपके,
और मन को यूँ लगे जैसे
सुखी टहनी में कोई फूल खिले,
हौले से नर्म हथेलियों की छुअन देकर
सहजते हो जिसे तुम माली की तरह
फिर खुद ही मुस्कुरा कर अपने प्यार पर
लुटाते हो प्यार, प्यार की तरह.............
काश की मैं लिख पाता, एक कविता तुम्हारे नाम........

कैसे दू मैं शब्दों को जीवन
वो तो बसते है तुम्हारे अन्दर
फिर भी इक कोशिश मैं रोज करता हूँ
कुछ लिखता हूँ, कुछ मिटाता हूँ,
यूँ कुछ शब्द फिर अपने से लगते हैं
ज़िन्दगी की धरातल पर सपने से लगते हैं
फिर धुप धवल आती हैं
ओस की बूंदों को उड़ा ले जाती हैं,
मैं चुनता रह जाता ओस की बुँदे
अंधियारी धुप के आगोश में,
फिर मेरे शब्द बिखर जाते
और छटपटाते मन के अन्दर जो
भरा होकर भी , खाली-पन रह जाता हैं....
काश की मैं लिख पाता, एक कविता तुम्हारे नाम ................

तुमने दिया जिन्हें अपने शब्दों से प्राण
वो फूल आज भी मुस्कुरा रहे हैं
तुमने लिखी जो पंक्तियाँ
वो नभ में उजियारा फैला रहे हैं,
हाँ तुम्हारे शब्दों में जीवन हैं
हर एक शब्द समेटे हैं अपने भीतर
नए मौषम को जीने की ख्वाहिश
जब-जब उतरता हूँ, इनमे समां जाता हूँ
अपने वज़ूद को तुम्हारे भीतर तलाशता हूँ,
मगर मैं हर बार रह जाता हूँ अधुरा
काश अपने कुछ शब्द तुम मुझे दे देती
मिलकर इक नयी दिशा गढ़ते
कभी तुम मुस्काती, कभी मैं मुस्काता
तुम्हारे दिल के दर्द को अपने भीतर पाता.....
काश की मैं लिख पाता, एक कविता तुम्हारे नाम............
______________________सिद्धू________________

Thursday, July 26, 2012




खो गए है तम्मनाओं के साये में वो ऐसे..
भूल गए सबको खुद की खबर  ना हो जैसे..

इतना आसाँ नहीं चाँद-तारो को तोड़कर लाना..
समझो कि दहकते हुए अंगारों को पार कर जाना..
वापस ज़मीं पे लौट आओ फ़लक पे ना घर बसाना..
सोती आँखों के ख्वाब पुरे हो भी तो कैसे...
 खो गए है तम्मनाओं के साये में वो ऐसे......

फ़ासले पड़ जायेंगे रिश्तो के दरमियाँ तुम्हारे..
क्या करोगे जो टूट जायेंगें आशियाँ तुम्हारे..
अपनों के बीच दिन गुजरेंगे परीशाँ तुम्हारे....
ऐसे हालत में ज़िंदगी गुजरोगे तो कैसे..
 खो गए है तम्मनाओं के साये में वो ऐसे.. ..

बदल दो ज़ज्बात अपने वक़्त के साथ यहाँ..
वफ़ाए दिल लेकर कर लो खुद से मुलाक़ात यहाँ..
मंजिल मिल जाएगी जो चलोगे थाम के हाथ..
पाओगे तुम सौगात "सिद्धू" नयी सहर आई हो जैसे...
खो गए है तम्मनाओं के साये में वो ऐसे......
भूल गए सबको खुद की खबर ना हो जैसे......
_________________सिद्धू_________________




अपने हयात को हम आखिरी सलाम कर चले।
ज़िन्दगी अपनी किसी के नाम कर चले।।
इतनी फुर्सत नहीं कि पहलू में बैठ गुप्त्गूं करे।
ख़ाक डालो ऐसे कामों पर जो गुमनाम कर चले।।
वो रक़ीब भला जो ऊसूल का हो पक्का।
दूरियाँ भली उन हबीबों से बदनाम कर चले।।
कुछ ऐसी चली है हवा शहर में इन दिनों।
किस्सा रुसवाई का सरे-आम कर चले।।
ये किस मौज़ की तासीर है,वफायें बाज़ार में।
मरीज़-ए-मुहब्बत अपना दाम बेदाम कर चले।।
याद आये हम अपने अज़मत की ख़ातिर।
"सिद्धू" कोई  तो ऐसा काम कर चले।।
_________________सिद्धू_______________

Monday, July 23, 2012



शाम की रंगत को और गहरा करती,
दूर खेतों से उठती धुएं की लकीर,
धुंधले से दिन का इकलौता उजला लम्हा,
बेला की सूखी टहनी पर अटका आख़री पत्ता ख़ामोशी से झर रहा था,
अपनी पूरी ज़िन्दगी के अधूरे पलों का हिसाब किये बगैर,
उदासिया शाम सी पसर रही थी दिन की रजाई में,
और इक लड़की पूछ रही थी चाँद का पता।
यकायक लांघकर सदियों की दीवार रु-ब-रु थे तुम,
अपने होने की तमाम योग्यताओं के साथ यक़ीनन ये तुम ही थ,
कहते है कि जब रात चूल्हे की गर्म राख सी जलती है बुझी-बुझी,
तब चांदनी होकर आती है यादें और आँखों पर डालकर,
अपनी गर्म हथेलियों का परदा छोड़ जाती है,एक नर्म छुअन,
छुअन जो कभी खुशबु बनकर महका देती है वजूद,
तो कभी स्याही बन कर रचती हैं नए कलाम,
यूँ तुम्हारे होने के एहसास के लिए गढ़ी जा सकती है,
हजारो-हज़ार उपमाएँ मगर मेरे लफ्जों में
 वो ताक़त कहा जो  बांध सके सकें तुम्हे,
लफ़्ज़ों से तो तुमने बांधा था दुनिया को,
और वो भी ऐसे की आज तक कोई सानी नहीं मिलता तुम्हारे नाम का,....
______________________________________सिद्धू_____________



Sunday, July 22, 2012




शब्दों से जीविका कमाने का धंधा बहुत ही विचित्र है।कवि और कलाकार  शब्दों को संजोते है, उन पर विचार करते है, उन्हें ऐसे दबाव के नीचे  रखते है  जो कि पृथ्वी हीरे के निर्माण करते समय डालती है। वे शब्दों को श्रधापुर्वक चुनते है, उन्हें तराशते है चमकाते है, तो हर शब्द को उसकी पंक्ति में रखते है। वे उसकी बनावट को जांचते परखते है उसे लय देते है, हर पंक्ति को उसके छंद में जमाते है और छंद को जमाते है सम्पूर्ण रचना में। और इस तमाम सावधानी और ज़मावट के बाद उनके गढ़े शब्द उड़ान भरते है।वो आपके मस्तिस्क पर छाप छोड़ते है, आप की खोपड़ी के भीतर विस्फोट करते है। अंतदृष्टी की चिंगारियां भरते है और फिर आप ज़रा भी सामान्य नहीं रह पाते।



काश तुम्हे पता होता कि कितना प्यार करते है तुमसे हम...!
दिल में हर घड़ी हर पल तुम्हारा ही ख्याल रहता है..
तुम्हारा मुस्कुराना देख कर जी करता है कि खो जाऊ..
किसी पहाड़ की खुबसूरत वादियों में..
तुम्हारा बोलना यु लगता है जैसे कोयल गाती हो अमुवा में....
तुम्हारी ये खुबसूरत आँखे उस गहरी झील सी लगती है
जो समा जाना चाहती हो समंदर में....
हाँ...! मैं समंदर हूँ.. आओ समा जाओ मुझमे..
दोनों मिलकर खो जाए प्यार की वादियों में....
काश तुम्हे पता होता कि कितना प्यार करते है तुमसे हम...!

दिल हर पल धड़क कर यही कहता है
कि तुम मेरी हो सिर्फ मेरी
दिल चाहता है तुम हर पर हँसती रहो
खुश रहो, तुम्हे कोई दुःख न पहुंचे..
क्योकि मई तुमसे प्यार करता हु..
प्यार सिर्फ प्यार जिसमे वासना की कोई आग ना हो ..
काश तुम्हे पता होता कि कितना प्यार करते है तुमसे हम...!

ये निगाहें तुम्हे देखने तरसा करती है ..
 पता है की इस प्यार की आग में
सिर्फ मैं  रहा हूँ "सिद्धू" मगर....
काश तुम्हे पता होता कि कितना प्यार करते है तुमसे हम...!
________________________________सिद्धू_________

Saturday, July 21, 2012


उन्नीसवीं शताब्दी के लेखक और राजनीतिञ " टामस मैकाल" की इस उक्ति पर गौर फरमाइए:---
"मुझे कोई महलो,उद्धानो,लज़ीज़ पकवानों,मदिराओ,वाहनों,सुन्दर वस्त्रों,और सैकड़ो नौकरों-चाकरों से युक्त सम्राट घोषित करना चाहे और बदले में यह शर्त रखे कि मैं कोई पुस्तक नहीं पढ़ सकता तो ये मुझे हरगिज़ कबूल नहीं होगा।"

Friday, July 20, 2012


बदनसीबी का दामन सीने से लिपटाए बैठे हैं।
हम अपनों के ही खून बहाए बैठे हैं।।
लोग कहते है, लहू का रंग एक है मगर।
भाई, भाई के पैरों में टांग अड़ाए बैठे हैं।।
जाना एक दिन सबको है जहाँ से मगर।
क्यूँ इंसान दुसरो के लिए मौत का रास्ता बनाए बैठे हैं।।
चलो अच्छा है कुछ सबक तो लेते है पाठशाला में।
अब क्या कहे उन्हें जो उस तालीम को भुलाए बैठे हैं।।
यूँ तो कहते रहते है हर कोई हम सब एक हैं।
मगर सियासत की खातिर लोगो को आपस में भिड़ाए बैठे हैं।।
तंग दिली जहान का पैरहन बन रहा रफ़्ता -रफ़्ता।
और "सिद्धू" लोग तन को रेशमी लिबास ओढ़ाए बैठे हैं।।
_____________________सिद्धू______________________

Thursday, July 19, 2012

"बेटा"- पिता ने घर पहुचे बेटे से कहा -"मेरी दवाईया ख़त्म हो गयी है...! और अभी पेंशन आने को 7  दिन है अगर पैसे दे देते तो ले आता-"
"ठीक है पिताजी देखता हु  -" कहते  हुए बेटा कमरे में घुस गया अन्दर जा कर पत्नी से कहा-"जरा आलमारी से पैसे निकल कर पिताजी को दे दो दवा लानी है-"
पत्नी ने कहा-" अभी कहा है पैसे वैसे भी मुझे आज ब्यूटी-पार्लर जाना है रात को पार्टी है ना याद है की नहीं और वैसे भी अगर कुछ दिन दवा नहीं खायेंगे तो कुछ हो तो  नहीं जायेगा ना-उन्हें...! कह दीजिये उनसे की अभी नहीं है.-"
बिस्तर पर लेटते हुए-" ठीक है "- अन्दर से ही पिता को आवाज़ दी - "अभी तो  पैसे  नहीं है पिताजी बस आते ही आपकी दवा मंगा दूंगा"
"ठीक है-" अन्दर का वार्तालाप सुनते हुए पिता ने कहा-"ऐसी कोई बात नहीं है बेटा फिर ला लेंगे-" और अपने जिस्म को कुर्सी पर ढीला छोड़ दिया की बिना दवा के हाई बी.पी. लो हो गयी......!! सिद्धू 

Wednesday, July 18, 2012

एक फुल वाले की दूकान के बोर्ड पर लिखा था।.........
इन्सान को हर जगह जीत चाहिए....
लेकिन वो मेरे पास आकर हार मांगता है।....
 ताकि वो दुसरो को जीत सके।...........
"धोखा देना और धोखा खाना इंसानी फितरत हैं, जो इस लानत से आज़ाद है वो जरुर जंगल में रहता होगा"
आज सुबह से ही  मन में एक टीस सी उठ रही हैं। यूँ महसूस हो रहा था जैसे की कुछ छूटा जा रहा है ज़िन्दगी में।  किसी से हुई गुप्त्गू बार-बार मन को गुदगुदाने लगती। उस पर यह ख़्याल की वो कोई अपना तो नहीं था मगर क्यूँ...! ज़हन से उसका ख़्याल नही जाता, क्यूँ उसकी बाते गुनगुनाती है कानो में..!और इक सुमधुर संगीत का एहसास जगाती है। मैंने कई बार अपने दिल से ज़हन से उस ख़्याल को झटकना चाहा मगर कमबख्त वो दर्द से भरा मीठा अहसास दर्द को और करीब खीचने की कोशिश करता। उफ़...! ये क्या है...? क्यूँ एक तड़प सी चाह सी मांग करने लगता है दिल...! खुद को बहलाते हुए,समझाते हुए मैं अपने आप को मशरूफ रखने के जतन में जुट तो जाता हु मगर फिर से वह ख़्याल रिमझिम फुहार सा दिल पर अपनी बूंदों से दस्तक देता और फिर मुझे बेचैन सा कर देता। इसी कशमकश में मैं अपने आप को समझाता की  जो है वह होकर भी मेरा  नहीं है, खासकर मेरे लिए,।बस उसे दिल के किसी कोने में रहने दे और एक सुनहरी याद  की बूंदों को छोड़ दे की जब-जब सावन आये मैं उस याद से महकने लगु, और ज़िन्दगी जो कि हर किसी को सभी कुछ नहीं देती की  तर्ज़ पर खुद को खुशनसीब समझू कि चलो और कुछ नहीं तो वो गुप्त्गू ही सही जो उसकी यादों के सहारे कुछ देर मुझे जीने तो देती हैं। वरना जहाँ बहुत कुछ छुट जाता है ज़िन्दगी में वो  वहां शख्स ही सही जिसे अनजाने में शिद्दत से चाहा था, उस शख्स से की गुप्त्गू कुछ पल में कई ज़िन्दगी जीने की ख्वाहिश जगा गई थी । आज वो मेरा कोई  नहीं मगर अपना सा तो लगा था कभी, फिर मैंने खुद को ही आवाज़ दी शायद वो भी सुन सके आवाज़  मेरी, मगर अफ़सोस मुझे खुद की ही आवाज़  सुनाई नहीं देती ,  बस उसे सुनना चाहता हूँ,  उसे पढना चाहता हूँ, गुनगुनाना चाहता हूँ, इक किताब की, इक खुशनुमा संगीत की तरह, जो दिल को दर्द से कुछ राहत दे मगर.....!!
एक टीस सी दबी रह गयी मन में।.....सिद्धू .....!!    

Monday, July 16, 2012

कितना समझौता करना पड़ता है, माँ-बाप को अपनी औलाद की खातिर , औलाद के भविष्य की खातिर खुद के वर्तमान व् भविष्य की बलि चढाने के बाद भी औलाद के भविष्य की ग्यारंटी हो यह कोई जरुरी नहीं होता,..!

आज की आज़ाद ख्याल पैदाशाइश इतनी आज़ाद हो गयी है की वह आज़ादी ही भूल गयी है, हर वो बात जो उनके जीवन में उन्हें दखल-अंदाज़ लगे नापसंद होती है नागवार गुजरती है, कोई कैसे उन्हें सलाह दे सकता हैं  अरे मजाल है ज़नाब अगर वो पलट कर ज़वाब न दे दे तो कहना , कहना क्या भुक्त-भोगी होंगे मगर अफ़सोस की ज़बान नहीं खुलती क्या करे औलाद  जो ठहरी,

Sunday, July 15, 2012

लीजिये बड़ा मुश्किल काम कह दिया आपने,
आज के दौर में हथियार उठाना आसान हैं बजाय कलम उठाने के,
फिर भी चलिए कोशिश करने की कोशिश करते हैं हम की फ़ना हो सके कलम के लिए,
रफ़्ता-रफ़्ता ही सही कुछ तो सीखेंगे यहाँ के इतने अच्छे और बेहतरीन साहित्य के बीच,
हो सकता है पढ़ते-पढ़ते ही लिखना आ जाये,
आज के दौर में वो भी भागम-भाग से भरा, कितने फनकार गुम  हो जाते है ज़िन्दगी की जद्दोज़हद में,
lijiye badaa mushkil kaam bata diya aapne,
aaj ke dour me hathiyaar uthana aasaan hai, bajaay likhne
fir bhi chaliye koshish karte hai, ham bhi fanaa hone ki,
raftaa-raftaa hi sahi kuchh to sikhenge yaha ke etne achhe aur behtreen sahitay ke bhich, shayad padhte-padhte hi sahi kuchh likhna aa-jaye hame,
kyoki aaj ke bhagam-bhag ke dour me kai fankar

*********मन क्यु आज उदास हैं*********

मन क्यु आज उदास हैं...!!
शायद किसी समस्या के आसपास हैं..

ये ज़िन्दगी की बेलगाम भागदौड
बिखरे सपने, अधूरी प्यास, टूटा मन,..
थकते तन, बिखरती सांस,
जैसे मज़बूरी आत्मा का लिबास हैं ...।
मन क्यु आज उदास हैं .....!!

सुकून है..! कि हंवा का भंवर...!
न यहाँ ठहरता ह न  वंहा..!
लरजते हाथ,पेशानी पे सिलवटे,
जैसे लाचारी का एहसास हैं...।
मन क्यू आज उदास हैं.....!!

 कभी सूखे, कभी भीगे,...!
जीवन के दिन ऐसे ही बीते....
हमारे पैरो में ज़मीं,
सर पे सारा आकाश हैं....।
मन क्यु आज उदास हैं.....!!

घर बड़ा तो हैं "सिद्धू" मगर ...
कितना खामोश, कितना वीरान...
इसका हर कोना रहता हैं...
जैसे इसे अपनों की तलाश हैं ......।
 मन क्यु आज उदास हैं.....!!
___________सिद्धू________

Thursday, July 12, 2012

था बहुत यकीन उनकी आशनाई पर हमें
कहाँ तो लूट गए उम्मीदे यार करते ।
इंसानियत के खुदगर्जी का आलम ये रहा
हर चेहरे पे चेहरा मिला नक़ाब की तरह ।


प्यार क्या शै है मिया प्यार की कीमत जानो
प्यार करे कोई तुमसे तो गनीमत जानो ।

ये दुनिया प्यार के किस्से मुझे जब भी सुनाती हैं
वो लडकी याद आती है,वो लडकी याद आती हैं ।
कभी खुशबु भरे ख़त को सिरहाने रख के सोती थी
कभी यादो के बिस्तर से लिपटकर खूब रोती थी
कभी आंचल भिगोती थी कभी तकिया भिगोती थी
ये उसकी सादगी है जो हमें अब भी रुलाती हैं
वो लड़की याद आती हैं वो लड़की याद आती हैं ।

चली आती थी मिलने के लिए हिले-बहाने से
गुजरती थी कयामत दिल पे उसके लौट जाने से
मुझे बेहद सुकूँ मिलता था उसके मुस्कुराने से
उतरकर चांदनी जिस वक़्त छत पर मुस्कुराती हैं
वो लड़की याद आती हैं वो लड़की याद आती हैं ।

वो मेरा नाम गीतों के बहाने गुनगुनाती थी
मैं रोता था तो वो भी आंसुओ में डूब जाती थी
मै हँसता था तो मेरे साथ वो भी मुस्कुराती थी
अभी तक याद उसकी प्यार के मोती लुटाती हैं
वो लड़की याद आती हैं वो लड़की याद आती हैं ।

जहा मिलते थे दोनों वो ठिकाना याद आता है
वफ़ा का, दिल का, चाहत का फ़साना याद आता है
के उसका ख्वाब में  आकर सताना याद आता है
वो नाज़ुक नर्म ऊँगली अब भी गुदगुदाती हैं
वो लड़की याद आती हैं, वो लड़की याद  आती हैं ।

वो कालेज का ज़माना आँख में नश्तर चुभोता हैं
और उसकी याद का सावन किताबो को भिगोता हैं
अकेले में  मुझको  यही महसूस होता है
के जैसे आज भी कालेज में पढने रोज़ जाती हैं
वो लड़की याद आती हैं वो लड़की याद आती हैं ।

Wednesday, July 11, 2012

Khamoshee:                                  *****ताज़***** ...

Khamoshee:        
                         *****ताज़*****
 ...
:                                  *****ताज़*****         ताज़ मैं गूंजती हैं मुहब्बत की आवाज़. सदियों पुराना हैं ये इश्क-ए-अफ़राज I .....


सोचते-सोचते क्यू आँख भर आई ।
यादों के घरोंदो से फिर उनकी याद आई ।।
दर्द से रिश्ता अश्को से नाता ।
यह कैसी मुहब्बत की सज़ा पाई ।।
सजाकर ख्वाब कुछ अधूरे हमने ।
क्यूँ ज़िन्दगी की चिता जलाई ।।
करके उसने बेवफाई हमसे ।
वफ़ा की अच्छी रीत निभाई ।।
करते हैं इंतजार "सिद्धू" आने का उनके ।
राहों में उनकी हमने  पलके बिछाई ।।

Tuesday, July 10, 2012



कितने  अज़ीब से यहाँ हालात हो गए ।
जाने क्यू लोग अपनों से दूर हो गए ।।
चलते थे कभी जो बनकर हमसफ़र ।
चलते हुए राह में वो आज खो गए ।।
क्या है दास्ता,कुछ खबर नहीं ।
जाने कैसे-कैसे हादसे हो गए ।।
वक़्त नहीं किसी के पास यहाँ ।
सब अपनी-अपनी हसरतों में खो गए ।।
रिश्तो के दरमियाँ बढाकर फासले ।
दिलो में कितने कांटे चुभो गए ।।
हवाओं के रूख में भी अजीब सी घुटन है ।
सारे मंज़र दहशतों में खो गए ।।
कहते है रहनुमा जिन्हें लोग सभी "सिद्धू" ।
जाने कितने कत्ले-आम उनके इशारों में हो गए ।।

Saturday, July 7, 2012

 हसरते दरिया में फना हो गए
हम कुछ और जँवा हो गए


Wednesday, July 4, 2012




दिल में तूंफा आँखों में दरिया लिए बैठे है I
शहरे हवादिस में उम्मीदें दुनिया लिए बैठे हैं  II(शहरे हवादिस - शहर के हादसे)

वक़्त दहलीज़ पे दस्तक देकर चला  गया I
हम यंहा इंतजार की बेड़ियाँ लिए बैठे हैं II

ग़ुरबत में जीना आंसा न था मगर I(ग़ुरबत - गरीबी,लाचारी)
जीने का बस यही जरिया लिए बैठे हैं II

इक मुक़म्मल तबस्सुम तक बिक गई क़र्ज़ तले I
अपने वतन में उधार की खुशिया लिए बैठे हैं II

मज़हब के परस्तारो की बाते छोड़िये ज़नाब I(परस्तारो - ठेकेदार, पुजारी)
वो आज भी ज़माने में दुरिया लिए बैठे हैं II

लोग कहते हैं बड़ा दिलचस्प खेल हैं राजनीति I
यानि की "सिद्धू" काम हम बढ़िया लिए बैठे हैं II
______________________सिद्धू _________

Tuesday, July 3, 2012

       
                         *****ताज़*****
       

ताज़ मैं गूंजती हैं मुहब्बत की आवाज़.
सदियों पुराना हैं ये इश्क-ए-अफ़राज I ...( इश्क-ए-अफ़राज --प्यार की शोभा बढ़ाने वाला)

ताज़ मज़हरे उल्फत हैं तो क्या... (मज़हरे उल्फत--- प्रेम का प्रतीक )
उसके सीने में दर्द छुपा होगा I
 जो न किसी ने देखा कभी..
वो ग़म का तून्फा रुका होगा I
रूह उनकी रोती होगी, जिनकी सन्नाई ने इसे किया ईजाद I -  (सन्नाई -- शिल्पकारी- कलाकारी)
 ताज़ मैं गूंजती हैं मुहब्बत की आवाज़..........

ज़ज्बा-ए-इश्क में डूबे  शहंशाह ने जब..
कारीगरों के हाथ कटवायें होंगे I
मुमताज़ का वफाए दिल रोया होगा..
आँखों में अश्क़ आये होंगे I 
क्या दिल-ए-उल्फत में नहीं होते नाजुक ज़ज्बात....
 ताज़ मैं गूंजती हैं मुहब्बत की आवाज़ I

हैरत भरी निगाहों से देख ज़माने के..
लब खुलते हैं इसकी सताइश में..I - (सताइश - प्रसंशा)
किसके कानों आती होगी सदा..
जो आह निकलती हैं इसकी नुमाइश में..I
लोग जानकर भी अंजान हैं "सिद्धू" ये राज़......
ताज़ मैं गूंजती हैं मुहब्बत की आवाज़ I  
___________________सिद्धू _______

Monday, July 2, 2012

ये वर्क वर्क तेरी दास्ताँ ,
ये सबक सबक तेरे तज्करे ,
मैं करू तो कैसे करूँ अलग ,
अब तुझे ज़िन्दगी की किताब से


Yeh Warq Warq Teri Daastaan,
Yeh Sabaq Sabaq Tere Tazkaray,

Main Karoon To Kaisay Karoon Alag,
Abb Tujhay Zindagi Ki Kitaab Say