Friday, July 20, 2012


बदनसीबी का दामन सीने से लिपटाए बैठे हैं।
हम अपनों के ही खून बहाए बैठे हैं।।
लोग कहते है, लहू का रंग एक है मगर।
भाई, भाई के पैरों में टांग अड़ाए बैठे हैं।।
जाना एक दिन सबको है जहाँ से मगर।
क्यूँ इंसान दुसरो के लिए मौत का रास्ता बनाए बैठे हैं।।
चलो अच्छा है कुछ सबक तो लेते है पाठशाला में।
अब क्या कहे उन्हें जो उस तालीम को भुलाए बैठे हैं।।
यूँ तो कहते रहते है हर कोई हम सब एक हैं।
मगर सियासत की खातिर लोगो को आपस में भिड़ाए बैठे हैं।।
तंग दिली जहान का पैरहन बन रहा रफ़्ता -रफ़्ता।
और "सिद्धू" लोग तन को रेशमी लिबास ओढ़ाए बैठे हैं।।
_____________________सिद्धू______________________

3 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सशक्त रचना....
ब्लोगर वर्ल्ड में आपका स्वागत है....
शुभकामनाएं.

अनु

SiD KuMaR said...

thanku ji

SiD KuMaR said...

thanku ji